Friday, January 4, 2019

Growth of Other Institution

अन्य संस्थाओं का विकास 

केन्द्रीय सचिवालय
  • वर्ष 1843 मेँ भारत के गवर्नर जनरल ने भारत के सचिवालय को बंगाल सरकार के सचिवालय से पृथक कर दिया था, जिसके फलस्वरुप केंद्रीय सचिवालय मेँ गृह, वित्त, रक्षा और विदेश विभागों की स्थापना हुई।
  • वर्ष 1859 में लार्ड कैनिंग द्वारा पोर्टफोलियो (विभाग-विभाजन) की प्रणाली शुरु की गई जिसके फलस्वरुप गवर्नल जनरल परिषद के एक सदस्य को केंद्रीय सचिवालय के एक या एक से अधिक विभागोँ का प्रभारी बनाया गया और परिषद की ओर से आदेश जारी करने के लिए प्राधिकृत किया गया था।
  • वर्ष 1905 में लॉर्ड कर्जन ने सचिवालय के कार्मिकोँ के लिए कार्यकाल संबंधी प्रणाली शुरु की थी।
  • वर्ष 1905 में भारत सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा रेलवे बोर्ड का गठन किया गया, जिसके फलस्वरुप रेलवे पर नियंत्रण का कार्य लोक निर्माण विभाग से लेकर इस बोर्ड को सौंप दिया गया था।
  • वर्ष 1947 मेँ भारत सरकार के विभागोँ का नाम बदलकर मंत्रालय कर दिया गया। उस समय केंद्रीय सचिवालय मेँ वैसे 18 मंत्रालय थे।
राज्य प्रशासन
ब्रिटिश शासनकाल के समय अस्तित्व मेँ आए और विकसित हुए राज्य प्रशासन से जुड़ी संस्थाएँ इस प्रकार थीं-
  • वर्ष 1772 मेँ लार्ड वारेन हैस्टिंग्स ने राजस्व संग्रहण और न्याय प्रदान करने के दोहरे प्रयोजन से जिला कलेक्टर के पद की रचना की।
  • वर्ष 1786 मेँ राज्य स्तर पर राजस्व प्रशासन से जुड़े मुद्दोँ पर निपटने के लिए सर्वप्रथम बंगाल मेँ राजस्व बोर्ड नामक संस्था का गठन किया गया था।
  • वर्ष 1792 में लार्ड कार्नवालिस ने जमींदारी थानेदार प्रणाली की जगह दरोगा प्रणाली की शुरुआत की जो जिला प्रमुख के सीधे नियंत्रण मेँ थी।
  • वर्ष 1929 मेँ लार्ड विलियम बेंटिक ने जिला और राज्य मुख्यालयों के बीच एक मध्यस्थ प्राधिकरण के रुप में प्रभागीय आयुक्त के पद की रचना की थी।
  • वर्ष 1861 मेँ भारतीय पुलिस अधिनियम के माध्यम से कांस्टेबल प्रणाली की स्थापना हुई जिसके द्वारा जिला पुलिस को जिला मजिस्ट्रेट (जिला कलेक्टर) के अधीन किया गया था।
स्थानीय प्रशासन
वर्तमान भारत के शहरी स्थानीय शासन से जुड़ी संस्थाएँ ब्रिटिश शासनकाल के दौरान अस्तित्व मेँ आई और विकसित हुईं जो इस प्रकार हैं-
  • वर्ष 1687 में भारत में पहले नगर निगम की स्थापना मद्रास मेँ हुई।
  • वर्ष 1726 मेँ बंबई (वर्तमान मुंबई) और कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) नगर निगमों की स्थापना हुई।
  • वर्ष 1870 मेँ लार्ड मेयो के वित्तीय विकेंद्रीकरण से संबंधित प्रस्ताव द्वारा स्थानीय स्वशासन संस्थाओं का विकास हुआ था।
  • लॉर्ड रिपन के वर्ष 1882 के प्रस्ताव को स्थानीय स्वशासन का ‘मैग्नाकार्टा’ माना गया। लॉर्ड रिपन को भारत मेँ स्थानीय स्वशासन का जनक माना जाता है।
  • विकेंद्रीकरण के मुद्दे पर रॉयल कमीशन की नियुक्ति सन 1905 मेँ की गई थी, जिसने अपनी रिपोर्ट 1009 मेँ प्रस्तुत की। इस कमीशन के चेयरमैन हॉबहाउस थे।
  • भारत सरकार अधिनियम 1919 के माध्यम से प्रांतो मेँ शुरु की गई द्वैध शासन प्रणाली के तहत स्थानीय स्वशासन को हस्तांतरित विषय का दर्जा प्राप्त हुआ था, जिसके प्रभारी भारतीय मंत्री होते थे।
  • सन 1924 में केंद्रीय विधायिका द्वारा एक कैंटोनमेंट एक्ट पारित किया गया।
  • भारत सरकार अधिनियम 1935 द्वारा शुरु की गई प्रांतीय स्वायत्ता से जुड़ी योजना के तहत स्थानीय स्वशासन को प्रांतीय विजय घोषित किया गया।
वित्तीय प्रशासन
  • 1735 मेँ भारतीय लेखा परीक्षा व लेखा विभाग का गठन किया गया।
  • सन 1860 मेँ बजट प्रणाली की शुरुआत हुई।
  • वर्ष 1870 में लार्ड मेयो ने वित्तीय प्रशासन का विकेंद्रीकरण किया जिसके फलस्वरूप प्रांतीय सरकारोँ को स्थानीय वित्तीय प्रबंधन के लिए उत्तरदायी बनाया गया था।
  • वर्ष 1921 में आक्वर्थ समिति की सिफारिश पर रेल बजट को आम बजट से पृथक कर दिया गया।
  • सन 1921 में केंद्र मेँ लोक लेखा समिति का गठन हुआ।
  • वर्ष 1935 में केंद्रीय अधिनियम द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना हुई।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद परिवर्तन Post Independence Change
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय संविधान के माध्यम से भारतीय प्रशासन का जो ढांचा तैयार हुआ, उसमें प्रजातांत्रिक और कल्याणकारी राज्य का प्रावधान किया गया था। स्वतंत्र भारत मेँ प्रशासन की दृष्टि कई बदलाव हुए, जो इस प्रकार हैं-
  • केंद्र और राज्य दोनों स्तर पर संसदीय प्रणाली की सरकार की शुरुआत हुई। इसमेँ कार्यपालिका, जो विधायिका से उत्पन्न थी, को प्रमुखता प्रदान करने के साथ-साथ इसे विधायिका के प्रति जवाबदेह भी बनाया गया।
  • केंद्र और राज्योँ के बीच शक्तियोँ के बटवारे के साथ साथ संघीय राजनीतिक प्रणाली की शुरुआत हुई किंतु केंद्र सरकार को अधिक शक्ति प्रदान की गई।
  • राजनीतिक कार्यपालिका की उच्चतर लोक सेवकों पर बरकरार रखी गई तथा लोक सेवको को राजनीतिक कार्यपालिका के अधीन माना गया।
  • राजनीति के दोनों स्तरों (केंद्र और राज्य) पर कल्याण और विकास से जुड़े कई विभागोँ का विकास किया गया। दोनो स्तरों परनई लोक सेवाओं (अखिल भारतीय, जैसे- आई.एफ.एस. और केंद्रीय सेवा दोनों) तथा लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।
  • लोक सेवको की भूमिका मेँ बदलाव लाया गया और अन्य सामाजिक आर्थिक विकास प्रक्रिया मेँ बदलाव लाने वाले अभिकर्ता का कार्यभार सौंपा गया।
  • राष्ट्रीय क्रांति और जिला स्तर पर नियोजन के माध्यम से प्रशासन मेँ कल्याण और विकास संबंधी पक्षों को शामिल किया गया। सबसे नीचे के स्तरों पर पर प्रजातंत्र को बल प्रदान करने के लिए पंचायती राज प्रणाली का आविर्भाव हुआ।
  • सलाहकार समितियों, दबाव समूह और अन्य के माध्यम से सभी स्तरों पर प्रशासन मेँ लोगोँ की भागीदारी सुनिश्चित की गई।

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