Friday, January 4, 2019

Evolution of Civil Services

लोक सेवा का विकासक्रम 

  • लोक सेवा और लोक सेवा प्रणाली की भारत मेँ शुरुआत पहली बार ब्रिटिश शासकों द्वारा ईस्ट इंडिया के शासनकाल (17वीं) शताब्दी के दौरान हुई थी।
  • शुरु मेँ, वाणिज्यिक कार्य मेँ लगे ईस्ट इंडिया कंपनी के सेवको को कंपनी की स्थल सेना और नौसेना के कर्मचारिओं से अलग रखने के उद्देश्य से लोकसेवक कहा जाता था।
  • 1675 में कंपनी ने पदो को नियमित तौर पर निम्नलिखित ढंग से श्रेणीबद्ध करने की परंपरा डाली- (नीचे से ऊपर के क्रम मेँ)
  1. अपरेंटिस (Apprentice)
  2. राइटर (Writer)
  3. फैक्टर (Factor)
  4. जूनियर मर्चेंट (Junior Merchant)
  5. सीनियर मर्चेंट (Senior Merchant)
  • बाद मेँ जब कंपनी के नियंत्रण क्षेत्र का विस्तार हुआ तो लोक सेवको को प्रशासनिक कार्य भी करने पड़े।
  • वर्ष 1765 तक लोकसेवक शब्द का प्रयोग कंपनी के अधिकारिक अभिलेखों मेँ होने लगा था।
  • लॉर्ड वारेन हैस्टिंग्स और लार्ड कार्नवालिस के प्रयासो के फलस्वरुप लोक सेवा का उदय हुआ। हेस्टिंग्स ने लोक सेवा की नींव रखी और कार्नवालिस ने इसे तर्कसंगत एवं नया रुप प्रदान किया।
  • इसलिए लॉर्ड कार्नवालिस को भारत मेँ लोक सेवा का जनक कहा जाता है। उसने उच्च लोक सेवा की शुरुआत की, जो निचले स्तर की लोक सेवा से अलग थी।
  • उच्च लोक सेवा का गठन कंपनी के कानून द्वारा जबकि निचले स्तर की लोक सेवा का गठन अन्यथा किया गया था।
  • कार्नवालिस ने उत्तर लोक सेवा के पदो को अंग्रेजों के लिए ही आरक्षित रखकर भारतीयो को उच्च पदो से वंचित रखा क्योंकि-
  1. कार्नवालिस को भारतीयो निष्ठा और योग्यता पर विश्वास नहीँ था।
  2. उसकी सोच थी कि भारत मेँ ब्रिटिश शासन को स्थापित करने और संगठित रखने का कार्य भारतीय मूल के लोग पर नहीँ छोड़ा जा सकता।
  3. उसका मानना था कि भारत मेँ ब्रिटिश मॉडल पर आधारित प्रशासन केवल अंग्रेजो द्वारा ही स्थापित किया जा सकता है, भारतीयों द्वारा नहीँ।
  4. वह सिविल सेवा के अधीन उच्च पदों को ब्रिटिश समाज के प्रभावशाली लोगोँ के लिए आरक्षित रखना चाहता था।
  • वर्ष 1800 में तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड वेलेजजी ने कंपनी के लोक सेवको को प्रशिक्षण देने के लिए कोलकाता मेँ फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की।
  • वेलेजली के इस कार्य को कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स (ईस्ट इंडिया कंपनी का शासी निकाय) का समर्थन नहीँ मिला, जिन्होंने प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए इंग्लैंड मेँ हेलीबरी में वर्ष 1806 मेँ ईस्ट इंडिया कॉलेज की स्थापना की थी।
  • चार्टर एक्ट 1833 के माध्यम से कंपनी के लोक सेवको के चयन के आधार के रुप मेँ खुली प्रतियोगिता प्रणाली की शुरुआत का प्रयास किया।
  • इस एक्ट में यह भी उल्लेख था कि भारतीयों को कंपनी के अंतर्गत रोजगार, पद और अधिकार से वंचित नहीँ किया जाना चाहिए
  • तथापि इस एक्ट के प्रावधान बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के विरोध के कारण लागू नहीँ हो सके जो संरक्षण प्रणाली को ही जारी रखना चाहते थे।
  • मैकाले समिति चार्टर एक्ट 1853 के माध्यम से संरक्षण प्रणाली समाप्त हुई तथा कंपनी के लोक सेवकों के चयन और भर्ती के आधार के रुप मेँ खुली प्रतियोगिता प्रणाली का सूत्रपात हुआ।
  • इस प्रकार बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स अपनी संरक्षक शक्तियो से वंचित हो गए और उच्च लोक सेवा की प्रतियोगिता मेँ नियंत्रण बोर्ड द्वारा बनाए जाने वाले नियमो के तहत भारतीयों को भी शामिल कर लिया गया।
  • इस अधिनियम के उक्त प्रावधानोँ को लागू करने के उपाय सुझाने के लिए वर्ष 1854 मेँ मैकाले समिति (भारतीय लोक सेवा से संबंधित समिति) की नियुक्ति हुई।
मैकाले समिति ने अपनी रिपोर्ट 1854 में ही प्रस्तुत कर दी जिसमेँ निम्नलिखित सिफारिश की गई थीं-
  1. सिविल सेवाओं में भर्ती के लिए खुली प्रतियोगिता प्रणाली अपनायी जानी चाहिए।
  2. इस परीक्षा मेँ प्रवेश के लिए अभ्यार्थियोँ की आयु 18 से 23 वर्ष होनी चाहिए।
  3. प्रतियोगी परीक्षा का आयोजन लंदन मेँ किया जाना चाहिए।
  4. अभ्यर्थियों को अंतिम तौर पर नियुक्त करने से पहले उन्हें कुछ समय के लिए परिवीक्षा (प्रोबेशन) पर रखा जाना चाहिए।
  5. हेलीबरी स्थित ईस्ट इंडिया कॉलेज को बंद किया जाना चाहिए।
  6. प्रतियोगी परीक्षा का स्तर ऊँचा होना चाहिए तथा गहन ज्ञान से युक्त अभ्यर्थियोँ का ही चयन ही सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • नियंत्रण बोर्ड ने उक्त सभी अनुशंसाओं को स्वीकार कर उन्हें लागू कर दिया।
  • पहली खुली प्रतियोगिता का आयोजन 1855 मेँ गठित नियंत्रण बोर्ड के अधीन लंदन मेँ कराया गया।
  • बाद में वर्ष 1858 मेँ इस प्रतियोगी परीक्षा के आयोजन की जिम्मेदारी वर्ष 1855 मेँ गठित ब्रिटिश सिविल सर्विस कमीशन को सौंपी गई।
  • 1858 मेँ ही ईस्ट इंडिया कॉलेज को बंद करके लोक सेवको को ब्रिटिश विश्वविद्यालयो मेँ प्रशिक्षण दिया जाने लगा था।
  • पहले भारतीय सत्येंद्र नाथ टैगोर को उच्चतर लोक सेवा मेँ प्रवेश 1864 मेँ जाकर ही प्राप्त हो सका।
  • इंडियन सिविल सर्विस एक्ट 1861 मेँ उच्च सेवा के सदस्योँ के कुछ महत्वपूर्ण पदों को आरक्षित रखने का प्रावधान किया गया था।
  • इसके बाद सिविल सर्विस एक्ट 1870 के माध्यम से 1861 के अधिनियम की त्रुटियों को सुधारा गया और इसमेँ भारतीयो के प्रवेश का प्रावधान किया गया। परंतु इसे तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिटन द्वारा 1879 मेँ ही लागू किया जा सका।
एचीशन आयोग
  • वर्ष 1886 में चार्ल्स एचीशन की अध्यक्षता मेँ लोकसेवा आयोग का गठन किया गया ताकि लोक सेवा में उच्च पदों पर आसीन होने की भारतीयों की दावेदारी के प्रति पूरा न्याय किया जा सके।
  • एचीशन आयोग ने अपनी रिपोर्ट वर्ष 1887 में प्रस्तुत की जिसमेँ निम्नलिखित सिफारिशें की गई थी-
  1. सिविल सेवाओं के दो स्तरीय वर्गीकरण (अर्थात उच्च और निचले) की जगह 3 स्तरीय वर्गीकरण अर्थात इंपीरियल (उच्चतम), प्रोविंशियल (प्रांतीय) और सबऑर्डिनेट (अधीनस्थ) को अपनाया जाना चाहिए।
  2. सिविल सेवा मेँ प्रवेश के लिए अधिकतम आयु सीमा 23 वर्ष निर्धारित की जानी चाहिए।
  3. भर्ती की सांविधिक सिविल सेवा प्रणाली का होना चाहिए।
  4. प्रतियोगी परीक्षा इंग्लैंड और भारत मेँ साथ-साथ आयोजित नहीँ होनी चाहिए।
  5. इंपीरियल सेवा के अधीन कुछ प्रतिशत पड़ प्रांतीय सिविल सेवा के सदस्योँ को पदोन्नत करके भरे जाने चाहि।ए आयोग की अनुशंसाओं को वृहद् स्तर पर स्वीकार और लागू किया गया। सांविधिक सिविल सेवा को 1892 मेँ समाप्त कर दिया गया।
इसलिंगटन आयोग
  • पुनः 1992 मेँ इसलिंग्टन की अध्यक्षता मेँ भारत मेँ लोक सेवा पर शाही आयोग की नियुक्ति की गई। इसलिंग्टन आयोग ने 1915 मेँ अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमेँ निम्नलिखित सिफारिशें की गई थीं-
  1. उच्चतर पदो पर भर्ती आंशिक रुप से इंग्लैंड और आंशिक रुप से भारत मेँ की जानी चाहिए। किंतु इसने इंग्लैंड और भारत मेँ एक ही समय पर प्रतियोगी परीक्षाएँ आयोजित करने के विचार के समर्थन नहीँ किया था।
  2. उच्चतर पदों 25 प्रतिशत आंशिक रुप से प्रत्यक्ष भर्ती तथा आंशिक रुप से पदोन्नति के माध्यम से भारतीयोँ द्वारा भरा जाए।
  3. भारत सरकार के अधीन सेवाओं को श्रेणी I और श्रेणी II मेँ वर्गीकृत किया जाए।
  4. लोक सेवको के वेतन का निर्धारण करते समय कार्य क्षमता को बनाए रखने के सिद्धांत का अंगीकरण किया जाना चाहिए।
  5. सीधी भर्ती के लिए 2 वर्ष की परिवीक्षा अवधि होनी चाहिए। आई. सी. एस.  के लिए यह अवधि तीन वर्ष की होनी चाहिए।
  • आयोग की रिपोर्ट 1917 मेँ प्रकाशित हुई जब इसकी सिफारिशें प्रथम विश्व युद्ध और 1917 की अगस्त घोषणा के कारण अप्रासंगिक हो चुकी थी। इसलिए इन सिफारिशों पर किसी प्रकार का गंभीर विचार विमर्श नहीँ हुआ था।
मोंट-फोर्ड रिपोर्ट
  • लोक सेवा के विकासक्रम मेँ अगला मील का पत्थर 1918 में मांटेग्यू-चेंसफोर्ड-रिपोर्ट अथवा मोंट-फोर्ड रिपोर्ट या भारतीय संवैधानिक सुधारोँ पर रिपोर्ट) थी, जिसमेँ निम्नलिखित सिफारिशेँ की गई थीं-
  1. उच्चतर पदों का 33% भारत में भर्ती के माध्यम से भरा जाए और इस प्रतिशत को 1.5 % वार्षिक की दर से बढ़ाया जाए।
  2. भारत और इंग्लैंड मेँ एक ही समय पर प्रतियोगी परीक्षाएँ आयोजित की जाए।
  3. आई.सी.एस. के सदस्योँ को अच्छा वेतन, पेंशन लाभ और भत्ते दिए जाने चाहिए।
  • उपरोक्त सिफारिशों को स्वीकार किया गया और 1919 के भारत शासन अधिनियम के द्वारा लागू किया गया।
  • इस अधिनियम के समय 9 अखिल भारतीय सेवायें मौजूद थीँ-
  1. भारतीय सिविल सेवा ICS
  2.  भारतीय पुलिस सेवा
  3. भारतीय वन सेवा
  4. भारती वन अभियांत्रिकी सेवा
  5. भारतीय अभियांत्रिकी सेवा
  6. इंडियन सिविल वेटरनरी सर्विस
  7. भारतीय चिकित्सा सेवा
  8. भारतीय शैक्षिक सेवा
  9. भारतीय कृषि सेवा
  • इस सूची मेँ भारतीय कृषि सेवा के रुप मेँ अंतिम अखिल भारतीय सेवा 1906-07 मेँ जोड़ी गयी थी।
  • इन सेवाओं के सदस्य भारत के राज्य सचिव द्वारा भर्ती और नियंत्रित किए जाते थे। इसलिए इन सेवाओं को राज्य सेवा के सचिव के रुप मेँ भी माना जाता था।
  • उल्लेखनीय रुप से अखिल भारतीय सेवा शब्द का पहली बार 1918 मेँ कार्य विभाजन समिति द्वारा प्रयुक्त किया गया था। एम. इ. गाटलेट इस समिति के अध्यक्ष थे।
  • 1918 और 1919 के सुहारोँ के परिणामस्वरुप पहली प्रतियोगिता परीक्षा (ICS परीक्षा) ब्रिटिश सिविल सेवा आयोग के पर्यवेक्षणाधीन 1922 मेँ भारत में (इलाहाबाद मेँ) आयोजित हुई थी
  • इस समय तक उच्चतर लोक सेवा मेँ प्रवेश के लिए पांच पद्धतियाँ मौजूद थीं। ये पद्धतियाँ थीं-
  1. इंग्लैंड मेँ आयोजित खुली प्रतियोगी परीक्षाओं द्वारा
  2. भारत मेँ आयोजित पृथक प्रतियोगी परीक्षाओं द्वारा
  3. बार से नियुक्तियों द्वारा (न्यायिक पदों के संबंध मेँ)
  4. सामुदायिक एवं प्रांतीय प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने के लिए नामांकन द्वारा (भारत मेँ)
  • 1922 मेँ भारत सरकार द्वारा निम्नतर सेवाओं पर भर्ती के लिए कर्मचारी चयन बोर्ड का गठन किया गया। यह 1926 तक काम करता रहा।
  • इसके बाद कार्योँ को नवगठित लोक सेवा आयोग द्वारा संपन्न किया जाने लगा।
ली आयोग
  • वर्ष 1923 मेँ लार्ड विस्काउंट ली की अध्यक्षता मेँ भारत मेँ उच्च सिविल सेवाओं से सम्बंधित रॉयल कमीशन की नियुक्ति हुई।
  • कमीशन ने अपनी रिपोर्ट 1924 प्रस्तुत करते हुए निम्नलिखित अनुशंसाएँ कीं-
  1. भारतीय सिविल सेवा, भारतीय पुलिस सेवा, भारतीय चिकित्सा सेवा, भारतीय इंजीनियरिंग सेवा (सिंचाई शाखा), भारतीय वन सेवा (मुंबई प्रांत को छोड़कर) को बनाए रखना चाहिए। इन सेवाओं के सदस्योँ की नियुक्ति तथा उन पर नियंत्रण रखने का कार्य भारत के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट द्वारा किया जाना चाहिए।
  2. अखिल भारतीय स्तर की अन्य सेवाओं, यथा-  भारतीय कृषि सेवा, भारतीय वेटरनरी सेवा, भारतीय शैक्षिक सेवा, भारतीय इंजीनियरिंग सेवा (सड़क एवं भवन शाखा) तथा भारतीय वन सेवा (केवल मुंबई प्रांत मेँ) के लिए आगे कोई नियुक्ति / भर्ती नहीँ की जानी चाहिए। भविष्य मेँ इन सेवाओं के सदस्योँ की नियुक्ति और नियंत्रण रखने का कार्य प्रांतीय सरकारों द्वारा किया जाना चाहिए।
  3. सेवाओं के भारतीयकरण के लिए उच्च पदों में से 20% पद प्रांतीय सिविल सेवा मेँ पदोन्नति के आधार पर भरे जाने चाहिए। सीधी भर्ती के समय अंग्रेजों और भारतीयों का अनुपात बराबर होना चाहिए ताकि लगभग 15 वर्ष मेँ 50-50 के अनुपात का लक्ष्य हासिल हो सके।
  4. ऐसे ब्रिटिश अधिकारियों को समानुपातिक पेंशन के आधार पर सेवानिवृत्ति की अनुमति दी जानी चाहिए जो भारतीय मंत्रियोँ के अधीन कार्य करने के इच्छुक न हों।
  5. भारत सरकार अधिनियम 1919 के प्रावधान के अनुसार लोक सेवा आयोग का गठन किया जाना चाहिए।
  • उक्त अनुशंसाओं को मानते हुए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें लागू करते हुए 1926 मेँ लोक सेवा आयोग की स्थापना की और आयोग को लोक सेवकों की भर्ती करने का कार्य सौंपा।
  • इस आयोग मेँ एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्योँ का प्रावधान था और इसके पहले अध्यक्ष ब्रिटिश गृह लोक सेवा के वरिष्ठ सदस्य सर रॅास बार्कर थे।
  • 1937 मेँ (जब 1935 का अधिनियम लागू हुआ) इस आयोग का स्थान संघीय लोक सेवा आयोग ने ले लिया और अंत मेँ, 26 जनवरी 1950 (जब भारतीय संविधान लागू हुआ) को संघ लोक सेवा आयोग अस्तित्व में आया।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 मेँ लोकसभा के सदस्योँ के अधिकारोँ और विशेषाधिकारोँ की रक्षा संबंधी प्रावधान किया गया था।
  • इस अधिनियम में संघीय लोक सेवा आयोग तथा प्रांतीय लोक सेवा आयोग की स्थापना के साथ-साथ दो या दो से अधिक प्रांतो के लिए संयुक्त लोक सेवा आयोग की स्थापना करने का भी प्रावधान था।
  • वर्ष 1947 मेँ अखिल भारतीय स्तर की केवल दो सेवाएँ ही अस्तित्व मेँ थीं- इंडियन सिविल सर्विस और इंडियन पुलिस सर्विस
  • इसके अतिरिक्त केंद्रीय और राज्य स्तर की विभिन्न सेवायें भी अस्तित्व मेँ थीं। केंद्रीय सेवाएं 4 श्रेणियों में वर्गीकृत थीं- श्रेणी-I, श्रेणी-II, अधीनस्थ और चतुर्थ श्रेणी की निम्नतर सेवाएँ।

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